Friday, April 29, 2011

शाम, रास्ता, सूरज, इश्क

 पिछले साल  लिखी  थी ये नज़्म....न जाने क्यों नहीं पोस्ट की ...आज ड्राफ्ट में कुछ टुकड़े तलाश रही थी, तभी मिली ...पढ़कर हंसी आई...सच! कितना बदल गए हैं हम...आज की तारीख में अगर ऐसा ख्याल आता तो हम यूँ न लिखते. इस एक साल के सफ़र ने सोच को मच्योर कर दिया...लेकिन हमने भी नहीं की छेड़खानी सहज भावो से....सो वैसा ही पेश कर रहे हैं :-)







मेरे तो रास्ता वही है
आने -जाने का
पिछले डेढ़ बरस से तो नहीं बदला

रोज़ ऑफिस से लौटते वक़्त
मिलता हैं मुझसे मवैया पुल पर

क्या-क्या नहीं करता मुझे
रिझाने के लिए
कसम से! पंद्रह मिनट के रास्ते में
पांच बार ड्रेस बदलता  हैं


कभी लाल और पीले का कॉम्बीनेशन
तो कभी नारंगी लाल
हाँ!कभी ब्लैक एंड व्हाइट भी,
हैण्डसम  तो तब लगा, जब
ग्रे शर्ट के साथ सिन्दूरी
स्टोल पहना के आया था
उसी दिन मेरा दिल उसपे आया था


कहता कुछ नहीं
बस ताकता रहता हैं
कभी पेड़ो के  झुरमुट  से
कभी बादल के चिलमन
कभी फ्लोर मिल की खिड़की  से 
और कभी  बिल्डिंग  के  पीछे  से

मेरी स्कूटी  को  भी  ना  जाने
कितनी  बार  फालो किया  है उसने



सांझ का   सफ्फाक  शफक
और  सुरमई  सूरज
आशना  है  मुझसे  वो


डर  है  तो  एक  बस 
किसी  दिन प्रोपोज ना  कर मुझे

अब  तुम  ही  बताओ 
ऐसे  में
कैसे  इन्कार  कर  पाऊंगी  मै ?

Friday, April 1, 2011

दिल चाहता है

मेरा दिल चाहता है
तुम्हे  इतना प्यार करूँ
के क्षीर सागर का जल समाप्त हो  जाए 

सूरज के हीलियम, हाइड्रोजन, टूट- टूट कर 
गले न, अपितु  सड़ जाए नाभिक में ही          
ऑक्सीजन को सोख ले कार्बन 
ऊर्जा का उत्सर्जन बंद हो जाए
हवाओं की गति शिथिल होते-होते
शून्य हो जाए



किसी भी जींस का बादल
धर्म बदल बन जाए कब्र
मृदुल  हो जाए नियम



दुनिया के किसी भी साहित्य,
किसी भी कला  का  कोई भी कलाकार
 ना दे  पाए  आकार  मेरी  चाहत  को
शिल्प ,अक्षर  निराकार  हो  जाए




मृत हो  जाए  सारे  जीवाश्म
विलुप्त हो जाए सभ्यताएं
जो  करोडो  वर्षो  तक  विकासक्रम
और इतिहास  को  चिन्हित  करते  हैं



रहे  तो  बस  प्रेम  सी  पावन
उदभव  और  विनाश  सी  शाश्वत
उत्खनन  में  खोजी  मेरी  चाहत  की  निशानियाँ 
कार्बन  डेटिंग  से  मिल  जाए  प्रमाण



धरती का सारा सौन्दर्य
मेरे प्रेम के आगे कुरूप हो जाए
विवशता शब्द को मिल जाए मृत्युदंड
बावजूद इसके
मेरा प्रेम अमर हो जाए