पिछले साल लिखी थी ये नज़्म....न जाने क्यों नहीं पोस्ट की ...आज ड्राफ्ट में कुछ टुकड़े तलाश रही थी, तभी मिली ...पढ़कर हंसी आई...सच! कितना बदल गए हैं हम...आज की तारीख में अगर ऐसा ख्याल आता तो हम यूँ न लिखते. इस एक साल के सफ़र ने सोच को मच्योर कर दिया...लेकिन हमने भी नहीं की छेड़खानी सहज भावो से....सो वैसा ही पेश कर रहे हैं :-)
मेरे तो रास्ता वही है
आने -जाने का
पिछले डेढ़ बरस से तो नहीं बदला
रोज़ ऑफिस से लौटते वक़्त
मिलता हैं मुझसे मवैया पुल पर
क्या-क्या नहीं करता मुझे
रिझाने के लिए
कसम से! पंद्रह मिनट के रास्ते में
पांच बार ड्रेस बदलता हैं
कभी लाल और पीले का कॉम्बीनेशन
तो कभी नारंगी लाल
हाँ!कभी ब्लैक एंड व्हाइट भी,
हैण्डसम तो तब लगा, जब
ग्रे शर्ट के साथ सिन्दूरी
स्टोल पहना के आया था
उसी दिन मेरा दिल उसपे आया था
कहता कुछ नहीं
बस ताकता रहता हैं
कभी पेड़ो के झुरमुट से
कभी बादल के चिलमन
कभी फ्लोर मिल की खिड़की से
और कभी बिल्डिंग के पीछे से
मेरी स्कूटी को भी ना जाने
कितनी बार फालो किया है उसने
सांझ का सफ्फाक शफक
और सुरमई सूरज
आशना है मुझसे वो
डर है तो एक बस
किसी दिन प्रोपोज ना कर मुझे
अब तुम ही बताओ
ऐसे में
कैसे इन्कार कर पाऊंगी मै ?