Sunday, March 27, 2011

जी नहीं चाहता





जी नहीं चाहता  कोई नज़्म लिखूं
किसी ख्याल की कोई आमद ही नहीं
ख्वाब आते भी हैं तो भूल-भूल जाते हैं हम
याद रखे उन्हें  ऐसी  नियामत  भी  नहीं  




मौसमो के बदलने से
सबा के बहकने से,
बूंदों के बरसने  से,
सुनहली धूप के गिरने से,
चांदनी के आने- जाने से,
मन नहीं मचलता अब,
तसव्वुरात में
कोई  रंग नहीं उभरता अब|



ये सारे आलम मेरे
ये सारे आसार
अच्छे शगुन नहीं
लिखना अब  मुनासिब  नहीं
लज्ज़त  नहीं
तासीर  नहीं
ना! कोई तहरीर  नहीं
ये अस्नामगरी* ना होगी हमसे 


कौन जाने  क्या  लिखा  है
 इन  तहरीरो  की  तकदीरो  में 
उस  तरफ  से  कोई  हवा  नहीं  बहती  अब 
इधर  स्याही  कुछ  नहीं  कहती  अब 
देखो! कोई सवाल ना करना हमसे
मेरे खोने की बात ना करना हमसे



कमबख्त!उम्मीद इस बाबत भी...
फ़िदा है हम पर
के सन्नाटे में ही कोई बात चले||