Monday, January 17, 2011

राय

बातें ज़ुबा पे आ
अक्सर रुक जाया करती हैं|

जो नही कहना होता है
वो सब कह जाया करती हैं|

आज मैं वो सारी आदतें अपनी
ताक पर रख आई हूँ|

आज ना झुकेंगी मेरी पलकें
नही लड़खड़ाएगी ज़ुबां
आज ना सहमूँगी मैं
नही बदलूँगी बात का विषय
ना समेटूंगी खुद को अपनी ही ज़द में|

इंतेज़ार कर रही थी के तुम ही बोलोगे 
मेरी हदे जानते हो तो मुह खोलोगे
लेकिन नही किया तुमने वैसा
मैने सोचा था जैसा|

तो सुनो
हाँ! हाँ!अच्छे लगते हो मुझे
प्यार करने लगी हूँ मै तुम्हे
तुम्हे कोई ऐतराज़ तो  बोलो ?

लेकिन
पहले सुन लो बात मेरी
इनकार किया तो भी रोक नही पाओगे
समझाओगे तो हार जाओगे
बाधा समझते  हो राह की ...
हमेशा पुल जैसा ही पाओगे

ऐसा ही कुछ कहा होगा ना
राधा ने श्याम से ?


एक कथानक तैयार कर रही थी
तुम्हारी राय लेने आई हूँ
ये विअर्ड फेशिअल इक्स्प्रेशन देना बंद करो

कुछ बोलोगे ?
या मै जाऊं ?


अच्छा सुनो !
पेपर्स  मेज  पर छोड़ जा रही हूँ
जब नोर्मल होना तो पढ़ लेना
रिंग कर दोगे तो आ जाऊंगी 
डिशकशन के लिए

अजीब बन्दा है!
देखते ही ब्लैन्क हो जाता है
कोई और तो नहीं होता ?



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चलते चलते एक शेर भी कहते चले ---


"मै तुझे चाहूं या ना चाहूं मेरी मर्जी ,
मेरी चाहत तेरी मिल्कियत  नहीं जानां"