Tuesday, August 30, 2011

ब्याह

उड़ती-उड़ती खबर मिली है
तुम्हारे गीतों और मेरी नज्मों
के बीच कुछ चल रहा है

वो बज़्म याद है
जब तुम्हारे गीत के साथ
उस शब् नज़्म ने जुगलबंदी की थी
हया झलक रही थी आँखों से
गीत बेशर्मी पे अमादा

संस्कार नहीं सिखाये तुमने !

एक ग़ज़ल ने कहा है  मुझसे
भरे भवन में आँखों से बात होती है
मुलाकाते, बातें  तय  होती  हैं
मै दोनों के रिश्ते की बात करने आई हूँ
अगली लग्न में ब्याह  करा देते है

मोहल्ले में काना-फूसी और नैन मटक्का बंद  :-)


माय री! सदके जाऊं मै
शफक सा सुर्ख लाल -पीला घाघरा
उस पर  हर्फो से ज़रिदारी
इस लफ्फाजी लिबाज़ में
जन्नत की अप्सरा फींकी

तुमने भी तो गीत की शेरवानी पे
बोल ऐसे टाँके है जैसे
जैसे हरसिंगार के फूल पर
ठहरा बसंत

बधाई हो! जन्नत सी  हो इनकी गृहस्ती

खुश हूँ बहुत
मुलाकात का जी चाहा तो  चली आई 
मालूम है तुम्हे ?
मेरी नज़्म हमिला है
जश्न  की  तैयारी  करो
अब तो बगिया में बहार आयेगी
मै चाहती हूँ एक नज़्म जन्मे ले
तुम चाहोगे के गीत आये

एक  दुआ  है  बस
रब्बा! जों भी दे तंदरुस्त दे

Tuesday, August 23, 2011

बावरी लड़की



घनघोर बारिश हुई बीते दो दिन
लेकिन आज सिर्फ  फुहारे गिरे
धूप से कहूं थोड़ी नरमी दिखाए
हवा हौले हौले बदन को छू सरक जाए


गुलमोहर बिछा  दूं रस्ते पे
बेलों को लहरा दूं थोडा
द्वार रंगोली बनाऊं
रुच-रुच आरती थाल सजाओं
खूब झूमूं, लजाऊँ, गुनगुनाऊ


कर लूं थोडा सा श्रृंगार
स्टोन वाली बिंदी जंचती है मुझ पर
काजल से चमक उठती  है आँखे मेरी
वो मेटेलिक कंगन जिसमे लाल,पीले और हरे स्टोन जड़े है
फब्दा  मुझ पर,
वार्डरोब खोले खड़ी हूँ
क्या पहनूं
जिसमें, सिंपल, सोबर और गुड लुकिंग लगूं
ये पर्पल कलर वाला अच्छा है
उनकी चोइस जैसा :-)


बस अब बंद करो संदेशे भेजना
शहर में रह कर इतनी दूरी अच्छी नहीं होती
नहीं होता इंतज़ार
जल्दी से आओ ना
ये बातूनी लड़की
बावरी हों चुकी है
तुम्हारी बाट जोहते-जोहते

Thursday, May 12, 2011

इल्जाम



हमें नहीं लिखना रेत पर तुम्हारा नाम
हमें नहीं रखना दिल में तुम्हारा अक्स
हमें  नहीं बैठाना तुम्हे पलकों पर
हम हाथ की लकीरों में भी नहीं चाहते तुम्हे
कसम से! दुआओं में भी कभी नहीं माँगा तुम्हे
कोई रस्म नहीं निभाई इखलाक की
दूसरों से क्या...
 खुद से भी जिक्र नहीं किया कभी तुम्हारा
अम्मी कहती हैं अच्छा करो तो अच्छा होता है
इस बाइस अडचनों पे खड़े हो जाते हैं साथ में





अपना ही भला करते हैं हम
दिमाग से करते हैं काम हम
दिल-विल में विश्वास नहीं करते
गोया बड़े शातिर, चालक और  खुदगर्ज़ हैं हम
हमें मासूम समझने की  गलती  ना  करना

Friday, April 29, 2011

शाम, रास्ता, सूरज, इश्क

 पिछले साल  लिखी  थी ये नज़्म....न जाने क्यों नहीं पोस्ट की ...आज ड्राफ्ट में कुछ टुकड़े तलाश रही थी, तभी मिली ...पढ़कर हंसी आई...सच! कितना बदल गए हैं हम...आज की तारीख में अगर ऐसा ख्याल आता तो हम यूँ न लिखते. इस एक साल के सफ़र ने सोच को मच्योर कर दिया...लेकिन हमने भी नहीं की छेड़खानी सहज भावो से....सो वैसा ही पेश कर रहे हैं :-)







मेरे तो रास्ता वही है
आने -जाने का
पिछले डेढ़ बरस से तो नहीं बदला

रोज़ ऑफिस से लौटते वक़्त
मिलता हैं मुझसे मवैया पुल पर

क्या-क्या नहीं करता मुझे
रिझाने के लिए
कसम से! पंद्रह मिनट के रास्ते में
पांच बार ड्रेस बदलता  हैं


कभी लाल और पीले का कॉम्बीनेशन
तो कभी नारंगी लाल
हाँ!कभी ब्लैक एंड व्हाइट भी,
हैण्डसम  तो तब लगा, जब
ग्रे शर्ट के साथ सिन्दूरी
स्टोल पहना के आया था
उसी दिन मेरा दिल उसपे आया था


कहता कुछ नहीं
बस ताकता रहता हैं
कभी पेड़ो के  झुरमुट  से
कभी बादल के चिलमन
कभी फ्लोर मिल की खिड़की  से 
और कभी  बिल्डिंग  के  पीछे  से

मेरी स्कूटी  को  भी  ना  जाने
कितनी  बार  फालो किया  है उसने



सांझ का   सफ्फाक  शफक
और  सुरमई  सूरज
आशना  है  मुझसे  वो


डर  है  तो  एक  बस 
किसी  दिन प्रोपोज ना  कर मुझे

अब  तुम  ही  बताओ 
ऐसे  में
कैसे  इन्कार  कर  पाऊंगी  मै ?

Friday, April 1, 2011

दिल चाहता है

मेरा दिल चाहता है
तुम्हे  इतना प्यार करूँ
के क्षीर सागर का जल समाप्त हो  जाए 

सूरज के हीलियम, हाइड्रोजन, टूट- टूट कर 
गले न, अपितु  सड़ जाए नाभिक में ही          
ऑक्सीजन को सोख ले कार्बन 
ऊर्जा का उत्सर्जन बंद हो जाए
हवाओं की गति शिथिल होते-होते
शून्य हो जाए



किसी भी जींस का बादल
धर्म बदल बन जाए कब्र
मृदुल  हो जाए नियम



दुनिया के किसी भी साहित्य,
किसी भी कला  का  कोई भी कलाकार
 ना दे  पाए  आकार  मेरी  चाहत  को
शिल्प ,अक्षर  निराकार  हो  जाए




मृत हो  जाए  सारे  जीवाश्म
विलुप्त हो जाए सभ्यताएं
जो  करोडो  वर्षो  तक  विकासक्रम
और इतिहास  को  चिन्हित  करते  हैं



रहे  तो  बस  प्रेम  सी  पावन
उदभव  और  विनाश  सी  शाश्वत
उत्खनन  में  खोजी  मेरी  चाहत  की  निशानियाँ 
कार्बन  डेटिंग  से  मिल  जाए  प्रमाण



धरती का सारा सौन्दर्य
मेरे प्रेम के आगे कुरूप हो जाए
विवशता शब्द को मिल जाए मृत्युदंड
बावजूद इसके
मेरा प्रेम अमर हो जाए



Sunday, March 27, 2011

जी नहीं चाहता





जी नहीं चाहता  कोई नज़्म लिखूं
किसी ख्याल की कोई आमद ही नहीं
ख्वाब आते भी हैं तो भूल-भूल जाते हैं हम
याद रखे उन्हें  ऐसी  नियामत  भी  नहीं  




मौसमो के बदलने से
सबा के बहकने से,
बूंदों के बरसने  से,
सुनहली धूप के गिरने से,
चांदनी के आने- जाने से,
मन नहीं मचलता अब,
तसव्वुरात में
कोई  रंग नहीं उभरता अब|



ये सारे आलम मेरे
ये सारे आसार
अच्छे शगुन नहीं
लिखना अब  मुनासिब  नहीं
लज्ज़त  नहीं
तासीर  नहीं
ना! कोई तहरीर  नहीं
ये अस्नामगरी* ना होगी हमसे 


कौन जाने  क्या  लिखा  है
 इन  तहरीरो  की  तकदीरो  में 
उस  तरफ  से  कोई  हवा  नहीं  बहती  अब 
इधर  स्याही  कुछ  नहीं  कहती  अब 
देखो! कोई सवाल ना करना हमसे
मेरे खोने की बात ना करना हमसे



कमबख्त!उम्मीद इस बाबत भी...
फ़िदा है हम पर
के सन्नाटे में ही कोई बात चले||


Monday, February 21, 2011

एक शाम कुछ यूँ हुआ

एक शाम कुछ यूँ हुआ
कायनात उलट सी गई,
फलक समंदर में
तब्दील होने लगा


बादल लहरों के माफिक
दौड़ -दौड़ साहिल तलाशने लगे
ज्वार-भाटे के गर्जन .....
आकाश में गश्त करने लगे
धरती की कश्ती में सिक्का फेंक
सूरज लुटने ही वाला था
के
चाँद ने आकर बाजी पलट दी


(ना जाने कितनो की बालाएं अपने सर लेगा
ये चाँद
)


आसमां ठहर गया
सागर नहीं बना,
धरती भी अपनी जगह कायम
पाताल होने से बच गई


अब के बार  कुदरती
प्यादों ने कोई साजिश की तो
कसम से !
ए खुदा सुन !
क़यामत तेरे घर होगी


समझा दे अपनी कुदरत को
हम खुदाबन्द ..
इन्साफपरस्त लोग हैं
अदालत ज़मी पे बैठेगी
पेशी भी यहीं पड़ेगी
सिर्फ तारीखे मिलेंगी
लगाना फिर चक्कर  पे चक्कर


बहरहाल !
केस फाइल नहीं किया है
मामला मुल्तवी हुआ...
बर्खास्त नहीं
ऑन रिकॉर्ड ना सही
ऑफ रिकॉर्ड है

एक और  बात -
सिर्फ तुम ही नहीं रखते बही खाता
फाइल री-ओपन यहाँ भी होती हैं
और सेटेलमेंट भी
  करो अब चुनाव
क्या चाहते हो ?



Monday, January 17, 2011

राय

बातें ज़ुबा पे आ
अक्सर रुक जाया करती हैं|

जो नही कहना होता है
वो सब कह जाया करती हैं|

आज मैं वो सारी आदतें अपनी
ताक पर रख आई हूँ|

आज ना झुकेंगी मेरी पलकें
नही लड़खड़ाएगी ज़ुबां
आज ना सहमूँगी मैं
नही बदलूँगी बात का विषय
ना समेटूंगी खुद को अपनी ही ज़द में|

इंतेज़ार कर रही थी के तुम ही बोलोगे 
मेरी हदे जानते हो तो मुह खोलोगे
लेकिन नही किया तुमने वैसा
मैने सोचा था जैसा|

तो सुनो
हाँ! हाँ!अच्छे लगते हो मुझे
प्यार करने लगी हूँ मै तुम्हे
तुम्हे कोई ऐतराज़ तो  बोलो ?

लेकिन
पहले सुन लो बात मेरी
इनकार किया तो भी रोक नही पाओगे
समझाओगे तो हार जाओगे
बाधा समझते  हो राह की ...
हमेशा पुल जैसा ही पाओगे

ऐसा ही कुछ कहा होगा ना
राधा ने श्याम से ?


एक कथानक तैयार कर रही थी
तुम्हारी राय लेने आई हूँ
ये विअर्ड फेशिअल इक्स्प्रेशन देना बंद करो

कुछ बोलोगे ?
या मै जाऊं ?


अच्छा सुनो !
पेपर्स  मेज  पर छोड़ जा रही हूँ
जब नोर्मल होना तो पढ़ लेना
रिंग कर दोगे तो आ जाऊंगी 
डिशकशन के लिए

अजीब बन्दा है!
देखते ही ब्लैन्क हो जाता है
कोई और तो नहीं होता ?



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चलते चलते एक शेर भी कहते चले ---


"मै तुझे चाहूं या ना चाहूं मेरी मर्जी ,
मेरी चाहत तेरी मिल्कियत  नहीं जानां"