Tuesday, October 19, 2010

ख्वाब, ख्वाइश, तंज़

एक मुद्दत से तमन्ना है सिगार पीने की
चिंताओं को धुंए के गुबार में उड़ा देने की


हुक्के की गुड-गुड से सियाह ख्यालों को स्वाहा कर..
रक्काशो पर रुपया लुटाने की


चिलम को मुह में दबा, गमो का मसनद बना
सारे रिवाजो को घुँघरू पहना, ठहका लगाने की


रम, बीअर व्हिस्की वाइन का कॉकटेल बना
जाम हाथ में पकड़ झूम जाने की


ऐसे में कोई फ़िल्मी धुन बज उठे,
कदम थिरक उठे
और हम गा दें फिर
" मैंने होठों से लगाई तो हंगामा हो गया"


ख्वाइशे भी अजीब होती है ना
आज मेरी कलम बेबाक मूड में है
तोड़ दी मर्यादाएं सारी
जात इंसान की होती है
ये तो बदजात निकली


खैर!
ख्यालों को यूँ बहा सुकूँ से हूँ
बेलगाम होने का सुख
तृप्त हुई मै
आज़ाद !
मै एक आज़ाद रूह हूँ


छिः यू हिप्पोक्रेटिक डबल स्टैण्डर्ड पीपल
तुम दुनिया से विलुप्त क्यों नहीं होते ?


Monday, October 11, 2010

स्रष्टि का निर्माण




कल पूर्णिमा थी
कलसे में भर ली चांदनी
आज सहर होते ही
आफताबी किरने भर ली
मटके में मैंने.


दरिया किनारे छुपा दिया मटका
कल रात जब
बादल चाँद को ढकेंगे
सिर्फ तारे आसमा से झाकेंगे
उनका बिम्ब दरिया के पानी पे बनेगा
तब तारो की परछाइयाँ बटोरूंगी
उस कलसे को हिफाज़त से सहेजूंगी .


ऐसा जाम किसी ने न बनाया होगा
खुदा को भी ये ख्याल ना आया होगा
लोग तो चाँद- तारे तोड़ने की बात करते है,
उनकी धरती से उनको छीनने की चाह रखते है
तेरे लिए ही तो मैं स्रष्टि बना रही हूँ
पञ्च तत्व बटोर कर ....
कुछ गहने पहना रही हूँ


मेरे हिस्से का आकाश इसमें समाया है
हवाओ के गेसुओ को इसमें पिरोया है
मेरी उर्जा की अग्नि का इसमें चूरन है
खिलखिलाहट से नम हुई आँखों का इसमें पानी है
मेरी सहनशक्ति धरती सी दीवानी है


मैंने जीते जी इन पञ्च तत्वों को तुमको भेट किया है
कहीं कोई दुनिया में ऐसी कहानी हो तो बताओ
ऐसा उपहार गर किसी ने किसी को भेट किया हो तो सुनाओ


तुम मुझे याद रखो
या के भूल जाओ
मैं न भूलूंगी
तुम्हे पूर्ण करने के लिए
मैंने क्या कुछ न किया .

प्रिया