Friday, September 3, 2010

तेरे  जाने का सबब मालूम नहीं
आने की भी वजह कहाँ थी कोई
आज बहुत याद आये तुम
सोचती रही
क्यों किया ऐसा ?
कोई गलती बताते मेरी
गुस्सा करते,
चीखते, चिल्लाते, झगड़ते
इल्ज़ाम लगाते
बिन आहट  चले गए 
दबे पाँव

अलमारी खोली
फाइल निकाली
वो नन्ही सी डायरी ...
जिसमें सिर्फ एक निशानी है तुम्हारी
तुम्हारा नाम
 अपने ही हाथो से लिखा था तुमने
उन अक्षरों को बार-बार छु
तुम्हे मौजूदगी को महसूस किया मैंने 
अब इस बात पर तो कोई ऐतराज़ नहीं ना ?

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1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... किसी नाजुक से एहसास कों पकड़ा है ...