हमारे लखनऊ में अब तक मानसून नहीं आया .....गर्मी से हाल बेहाल है और ऊपर से ह्यूमिडिटी ...उफ्फ्फ जानलेवा ....हवा को भी ऐतराज़ है बहती नहीं आजकल. मूड हुआ तो लू बन उडती फिरती है ....शाम ठंडी बयार बन नहीं बरसती .....तो मोरल ऑफ़ द स्टोरी ये है की मौसम ने हमें दुखी कर रखा है....... बुला रहे हैं मानसून को शायद सुन ले मेरी पुकार ....लेकिन बैलेंस बना के आना और टाइम से वापस भी चले जाना...ज्यादा मेज़बानी नहीं होगी हमसे :-)
बड़ी व्याकुलता है दिल में मेरे
किस तरह छुपाऊं खुद को ?
खूबसूरत हूँ मैं
इसमें मेरा दोष नहीं
और तुम हो कि
जरा भी होश नहीं
इसमें मेरा दोष नहीं
और तुम हो कि
जरा भी होश नहीं
वृक्ष लहरा- लहरा घटा को बता देते हैं
बादल गरज-गरज मुझे छेड़ जाते हैं
हवा बदन को छू केशो से खेल जाती है
वारिधि के इशारे पर
दामिनी तड़ित हो मेरा चित्र खींच ले जाती हैं
एक उल्का ने गिर बताया हैं मुझे
एक रहस्य से अवगत कराया है मुझे
चपल दामिनी ने तारो को मेरा चित्र भिजवाया है
कुछ तारों का तो मन भी मचल आया है
कुछ तारों का तो मन भी मचल आया है
ये जान नयनों की सरिता कहाँ थमने वाली है,
जब फाख्ता आँगन पर बैठ ...
अपनी सखी से मेरी कथा बता रहा था
पास क्यारी में भंवरा मिलन गीत गा रहा था
उसके पंखो पे सन्देश लिख भिजवाया है
अब जों देर की तो बड़ा पछताओगे
मेरे बिना तो अधूरे ही कहलाओगे