Friday, May 28, 2010

याद बिल्कुल नहीं आते मुझे तुम


सोचते होगे के
याद आते हो मुझे तुम
गलत हो तुम
हमेशा की तरह


मैं उनमें से नहीं
के यादों की गठरी
साथ बाँध  टहलू.



गुज़रे को भूल
वर्तमान को जीती हूई
भविष्य का निर्माण
आदत है मेरी.  



कल एक कॉमन फ्रेंड
से मुलाकात हुई
उसके साथ मिल
तुम्हारी बुराई में
पूरा दिन गुज़ारा. 



शब् तक झगड़ पड़ी उससे
तुम्हारी  बुराई में ....
मुझसे ज्यादा पार्टीसिपेट किया उसने.
मुझसे ज्यादा कोई बुरा कहे तुम्हे .....
ये बर्दाश्त नहीं मुझे.



भले ही तुमने ना दिया हो
भले ही मैंने ना लिया हो
" हक"
कुछ कहने- सुनने का.



अब कोई खुशफहमी मत पलना
यहीं
कि तुम मुझे याद आते हो.



इतना तो याद ही होगा
कि एक्सपायरी डेट की दवा
नहीं रखती मैं मेडिकल बॉक्स में.



जैसे मुझे याद हैं -
टेलकम पावडर
डाल -डाल कर तुम्हारा
जुराबे पहनना



सुधरे तो होंगे नहीं तुम
याद बिल्कुल नहीं आते मुझे तुम.


प्रिया  


Sunday, May 16, 2010

रूमानी मौसम

अभी कुछ दिनों पहले मौसम की आशिकी का शिकार हुए हम। मतलब सूरज का कम्प्लीटली किडनैप हो गया। घुमड़ - घुमड़ बादल गरजे.....मस्तानी सी हवा बह चली .... बारिश जैसा माहौल बना लेकिन बूंदों को बादल ही गटक गया....दो-चार गिरी....और बावरी धरती को धोखा हो गया....धरती भीगी नहीं इस बार .....थोडा और इंतज़ार ...लेकिन वसुंधरा पर महोत्सव हुआ....पंछियों ने लोकगीत गाये तो वृक्षों ने किया नृत्य.....ऐसे में हमारी क़लम मचली ....बहुत रोका- टोका लेकिन हमेशा की तरह कर गई बगावत। ढीढ कहीं की...बेलगाम होती जा रही हैं....अब देखिये इसकी हरकत........







सोंधी - सोंधी हवा,
गीली गीली यांदें,
भीनी-भीनी माटी,
थिरकती शाखे
एक काला सफ़ेद बादल ...
सूरज निगल गया।


दिल में दबा -दबा सा
एक पल रुका-रुका सा
मोर बन के
लबों से सरक गया।


पलाश की लाल घंटिया
रास्तो पर बिछ गई
रौनक ऐसी देख ....
हर श्रृंगार की कलियाँ चटक गई ।



चटकी फिर एक लम्हा भी ...
ना शाखों पर वो रुकी
पिय मिलन को आतुर
बिन मुहूर्त विदा हुई।



पत्तों ने भी गले लगा
बाबुल का फ़र्ज़ निभा दिया
सिली -सिली सी आँखों से
कली को विदा किया


आंधी में टूटी अमियाँ
इधर - उधर बिखरी हैं
ज्यूँ बिटिया-ब्याह के बाद
अंगना में फैली
सामानों की लड़ी हैं ।


कल का हंसी वो मौसम
थोड़ी राहत तो दे गया
मन हो मदहोश जिसमें
ऐसी रूमानी बरसात दे गया ॥



प्रिया