Wednesday, April 28, 2010

बड़ा गुरुर है गूगल को

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बड़ा गुरुर है गूगल को

अपनी सोच

अपनी तकनीक पर

नंबर वन सर्च इंजन बना फिरता हैं

खोजी दस्तों का

मै नज़्म लिखना छोड़ दूं

गर तुमको ढूंढ के लाये वो




"प्रिया
"




Wednesday, April 7, 2010

सोचो ! जो हम परिंदे हो जाए







कभी - कभी यूँ ही
उठ जाते हैं दिल में
मासूम ख्याल
तुम्हारे साथ।



उड़ना चाहती हूँ
परिंदों जैसे।


सोचो !
जो हम परिंदे हो जाए।


किसी इलेक्ट्रिक वायर पर
बैठ चूँ-चूँ करें।


किसी टेलेफ़ोन टॉवर
पर बसेरा हो अपना।


घरो के सामने
बहती नाली पर
दोनों मिलकर पानी पिए।



फिर मैं फुर्र से उड़ जाऊं
तुम चीं चीं करते
ढूढने आओ मुझे




पूरा कुनबा मिलकर
पड़ोस वाले अरोड़ा साब
की छत पर फैले अनाज की
दावत उड़ाए।



किसी के आमद की आहट से
सारे एक साथ उड़ जाएँ।



जब तुम कैटरपिलर पर
मुहं साफ़ करो
तो मैं रूठ जाऊं
क्योंकि
मुझे नोन-वेज पसंद नहीं।




फिर तुम नन्हे से ...
गड्ढे में भरे
चुल्लू भर पानी में
गोता लगा, कसरत दिखा
मनाओ मुझे।



मैं तुमसे अलग
कुछ दूर फुद्कूं
पर
जल्द मान जाऊं।




रात में मेहनत के तिनको
से बने
बिन दरवाजे के घोसले पे
बेफिक्र तेरे सहारे सो जाऊं।



ज्यादा तमन्नाए कहाँ है मेरी
छोटी -छोटी चाहते
और संघर्ष में तुम्हारा साथ
क्या ऐसा ख्याल भी है
भौतिकवाद ?