Thursday, August 27, 2009

उसको देखा तो

(आप सबको नमस्कार, प्यार, सलाम ! साथ ही शुक्रिया... जो आपने हमें प्रोत्साहित किया और ढेर सारा प्यार दिया...उम्मीद है कि आप हमेशा ही अपने बहुमूल्य विचारो से मुझे अवगत कराते रहेंगे और साथ ही अपना स्नेह यूहीं बनाए रखेंगे। )


वो जीना चढ़ रहा था
सर पर ईंटो की छाव लिए
सीढियां थोडी ज्यादा थी
चढ़ता जा रहा था बिना कोई पड़ाव लिए
माथे का पसीना छलक कर
ठुड्डी तक गया था
ठुड्डी पर ठहरी वो बूँद
कोहिनूर सी लगी मुझे
जब वो टपक कर उसकी बेटी पर जा गिरी थी
बिटिया ने देखा ऊपर
मुस्कुरा कर पूँछ ही लिया



बाबा , " खाना खाने कब आओगे ?
अब छलक रहा था वात्सल्य आँखों में मोती बनकर,
ममता बरस पड़ी थी एक सीधे - सादे प्रश्न पर,
सूरज की चांदनी में स्याह पड़ा वो धुआं सा चेहरा ,
एक मासूम सी हँसी हँसा,
पाँव आगे बढा कर खनकती आवाज से बोला,
तू खेल पर कहीं दूर मत जइयो .....
जा जाकर मदद कर दे अम्मा की
अच्छा सुन ! रहने दे थक जायेगी
छाँव में बैठ जाके
बस काम निपटा के आते हैं।



मैंने नभ को निहारा, फिर धरती को..
होंठो को दांतों में दबाकर, वीरान सी आँखों में ठंडक लिए
आप ही कुछ कह गई ....
चल मान गई तेरी खुदाई....


"शुक्र है शफ़क़त - -वालदैन से नवाजा है तूने
वरना तेरी दुनिया में रिश्तो का कारोबार भी तो है"




Thursday, August 6, 2009

"जिन्दगी के सुख चुराए जब "

(जीवन से कुछ पल निकाल फिर हाज़िर हुई हूँ आज। एक नई सोच के साथ.... सुना है कि ईश्वर के पास एक बहीखाता होता है ,जिसमें हमारे भूत, भविष्य और वर्तमान का लेखा- जोखा होता है, कब, क्या कहाँ, कैसे होगा ये सब पूर्व निर्धारित है..... सोचिये वो बहीखाता हाथ लग जाये तो... आप सब का तो नहीं जानती पर हम तो कुछ यूँ कर गुज़रे शायद .......)






मेरे खुदा बस इतना रहमत कर दे,
ज़िन्दगी की किताब की 'इंडेक्स' दे दे,



मै सिर्फ इतना करूंगा..
किताब के वर्क पढ़..
ख़ुशी, गम के पन्नो का नंबर
नोट कर लूँगा



जब कभी तुम थक जाना
मै अपनी मर्जी से वर्क पलट
एक हिस्सा जिन्दगी जी लूँगा



मेरा फ़रेब बस इतना होगा
जल्दी -जल्दी ख़ुशी के वर्क पढ़ ...
लम्हा - लम्हा वो वक़्त जी लूँगा



हाँ तुम्हारी प्लानिंग गड़बड़ होगी
नाराजगी भी जायज हो शायद ..
मुझे सजा सुना देना मौत की
गम के दिनों से तो मौत भली



सफाई में इतना कहना है मुझे



"तेरी लिखी पे मैंने ..
अपनी सोच डाल दी...
अपनी खुदी खुद पर निसार दी...
मैंने लिखी कुछ एक साथ जी ली...
जो अच्छी लगी जिन्दगी,
जाम जान फटाफट पी ली।



कुसूर इतना है मेरा
तूने फलसफे बनाए जिंदगी के
मैंने उसमें अपनी मर्जी से ...
आसानी ढूंढ ली.



मेरी जिंदगी की सहूलियत को
गुनाह जाना है तुमने ,
मुझे सजा देने का हकदार भी खुद को
माना है तुमने ,
संसार को तो नश्वर बनाया है तुमने ,
अचंभित हूँ ....और इसमें ही जीवन सजाया है तुमने




हे अजेय, अजन्मा, अरूपा, सर्व्सक्तिमान
मुझे तो बस इस शाश्वत सत्य को अपनाना है ,
तिनका - तिनका दुःख सहने से बेहतर तो ...
मौत को गले लगाना है ,
देखो इसमें तुमको भी आसानी होगी ,
प्रकृति का नियम भी कायम रहेगा ,
और मरने में बस थोडी मेरी मनमानी होगी




लगता है कन्विंस हो गए हो
या फिर मैं और बोलू .......


सोचने के लिए वक्त चाहिए तो ले लो,
पर निर्णय थोडा जल्दी और पक्ष में देना ..
पल भर का तनाव भी अच्छा नहीं लगता,
गम का कोई लम्हा सच्चा नहीं लगता ,
यू नो " सुख और खुशियों की आदत सी पड़ गई है मुझे "